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The novel touches upon themes of gender discrimination, dowry, along with the struggles confronted by Gals in a male-dominated Culture. Premchand’s writing is characterised by its deep understanding of human nature and also the socio-cultural backdrop of his time. By way of Nirmala, he sheds mild around the injustices confronted by Girls and raises vital questions on morality, social conventions, and the need for societal reform.
जब मैं सड़क पर आई तो ठंडी और ताजी हवा के स्पर्श मात्र से ही मुस्करा पड़ी तभी मेरी नजर एक ज्योतिष-केन्द्र पर पड़ी तो वहाँ जाने से मैं खुद को रोक न सकी। अपने आप ही मेरे कदम उधर बढ़ गए। मैंने देखा, वहाँ भीड़ नहीं थी। वैसे तो ज्योतिष पर मुझे विश्वास नहीं था, पर अब थोड़ा-थोड़ा यकीन होने लगा
The novel delves to the intricacies in their connection, inspecting the societal expectations, moral dilemmas, and private sacrifices they confront. Given that the characters navigate the challenges posed by appreciate, obligation, and honour, the novel raises profound questions about the character of good and evil. This Hindi fiction e-book is celebrated for its deep exploration of human emotions and the philosophical themes it addresses.
संत ने बिच्छू को फिर अपने हाथ से निकाला। बिच्छू ने संत को फिर डंक मारा।
घर आकर मां को मक्खियों के बारे में बताया। वह हमारे खाने को गंदा कर देती है। घर में आकर गंदगी फैल आती है। इसे घर से बाहर भगाना चाहिए।
मुकेश कोई छः – सात साल का होगा। उसे पेंटिंग करना और क्रिकेट खेलना बेहद पसंद है। खाली समय में वह क्रिकेट खेलता और पेंटिंग बनाया करता था।
संत से कहा – आप जानते हैं बिच्छू का स्वभाव नुकसान पहुंचाने का होता है।
गत वर्ष जब प्रयाग में प्लेग घुसा और प्रतिदिन सैकड़ों ग़रीब और अनेक महाजन, ज़मींदार, वकील, मुख़्तार के घरों के प्राणी मरने लगे तो लोग घर छोड़कर भागने लगे। यहाँ तक कि कई डॉक्टर भी दूसरे शहरों को चले गए। एक मुहल्ले में ठाकुर click here विभवसिंह नामी एक बड़े ज़मींदार मास्टर भगवानदास
(एक) “बंदी!” “क्या है? सोने दो।” “मुक्त होना चाहते हो?” “अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।” “फिर अवसर न मिलेगा।” “बड़ा शीत है, कहीं से एक कंबल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।” “आँधी की संभावना है। यही अवसर है। आज मेरे बंधन शिथिल जयशंकर प्रसाद
(एक) बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की ज़बान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्के वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी
यह कवच विशाल को कुछ दिनों में भारी लगने लगा। उसने सोचा इस कवच से बाहर निकल कर जिंदगी को जीना चाहिए। अब मैं बलवान हो गया हूं , मुझे कवच की जरूरत नहीं है।
यह बच्चों के लिए एक कश्मीरी लोक कथा है।
मोरल – स्वयं की सतर्कता से बड़ी-बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है।